"शांति का पुजारी भारत सं० राष्ट्र संघ का एक सक्रिय सदस्य रहा हैं इसी आधार पर भारत का संविधान उन सभी विचारों आदशों मूल्यों मानको एवं शब्दावलिया का उल्लेख किया गया हैं | जिनका संगठन मानवाधिकार के U .N . चटिर में हैं | हमारे संविधान का भाग 3 (अनु० 12 से 35 ) मूल अधिकरों की घोषणा करता हैं और भाग 4 (अनु० 36 से 51 ) राज्य के निति निर्देशक तत्वों का वर्णन करता हैं परन्तु भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के ४६ वर्षों बाद तक जन प्रतिनिधियों एवं इनके सलाहकार प्रसाशनिक अधिकारियों का ध्यान मानव संरक्षण कानून बनाने जैसे आम मुद्दों की तरफ नहीं गया| वर्ष १९९३ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रयास से मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम पारित किया गया | हमारी गणतंत्र सरकार ने मानवाधिकारों की रक्षा और इनके बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से सितम्बर १९९३ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन राष्ट्रपति के एक अध्यादेश द्वारा १९९३ में किया गया | इसके एक वर्ष बाद ही वर्ष १९९४ में एक अधिनियम पारित कर राज्यों में मानवाधिकार आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया | यह आयोग मानवाधिकारों के हनन और उल्लंघन के मामलों की जांच स्वयं या किसी के द्वारा शिकायत किये जाने पर करता है | उ० प्र० में राज्य मानवाधिकार आयोग कार्यरत है | देश के कुछ राज्यों में इनका गठन पूरा नहीं हुआ है | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में है | इस आयोग के अध्यक्ष पद पर माननीय सर्वोच्च न्यायलय के सेवानिवृत न्यायधीश को नियुक्त किया जा है तथा अन्य सदस्य होते हैं
मानवाधिकार का हनन मानव द्वारा ही किया जाता है चाहे वह व्यक्ति दबंग हो या सरकारी लोक सेवक| इसमें विभाग या कुर्सी से कोई मतलब नहीं होता| उत्पीड़नकर्ता चाहे कितना ही उच्च या सशक्त पद पर हो , परिवार में उसकी हैसियत एक साधारण अभियुक्त जैसी होती तथा उसे व्यक्तिगत तौर पे न्यायलय प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है| उस समय उसे मानव उत्पीड़न का एहसास हो जाता है|."